(नितेन्द्र झां)
महोबा/ रेलवे विभाग से जुड़ा एक हैरान करने वाला दृश्य सामने आया है। रेलवे परिसर के भीतर स्थित एक पुराने और खाली पड़े आवासीय क्वार्टर आरबी वन 30/बी को अब एक ठेकेदार द्वारा सीमेंट गोदाम में तब्दील कर दिया गया है। यह दृश्य सिर्फ एक अनधिकृत गतिविधि का नहीं, बल्कि पूरे रेलवे प्रशासन की कार्यशैली पर सवालिया निशान छोड़ता है।
रेलवे के आवासीय क्वार्टर सिर्फ रहने के लिए होते हैं — यह बात रेलवे के नियमों में स्पष्ट है। अगर वह भवन उपयोग में नहीं था, तब भी उसका उपयोग बिना उचित अनुमति के नहीं किया जा सकता। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या संबंधित अधिकारियों की जानकारी में यह सब हो रहा है, या फिर विभाग की मिलीभगत से नियमों को ठेंगा दिखाया जा रहा है?
जिस तरह से वहां सीमेंट की बोरियों का जमावड़ा और भारी वाहनों की आवाजाही देखी गई है, उससे यह तो तय है कि मामला केवल “अस्थायी उपयोग” का नहीं है। यह एक संगठित गतिविधि है, जिसके पीछे योजना, संसाधन और मौन सहमति — तीनों शामिल हैं।
यह पहली बार नहीं है जब रेलवे परिसरों के भीतर सरकारी संपत्तियों का इस तरह से दुरुपयोग सामने आया हो। सवाल यह है कि क्या इस बार भी विभाग आंखें मूंद लेगा, या फिर कार्रवाई होगी?
सरकारी संपत्तियाँ जनता की होती हैं। उन्हें इस तरह निजी लाभ के लिए उपयोग में लाना केवल नियमों का उल्लंघन नहीं, बल्कि जनता के साथ धोखा है। ऐसे मामलों पर यदि उच्च स्तरीय जांच न हो, तो यह एक गलत परंपरा को बढ़ावा देता है, जहां नियमों का कोई मोल नहीं बचता।
अब जिम्मेदारी रेलवे प्रशासन की है — क्या वह इस मामले को नोटिस में लेकर पारदर्शिता से जांच कर पाएगा? या फिर यह वीडियो भी बाकी सबूतों की तरह धूल फांकता रह जाएगा? हालांकि मंडल रेल प्रबंधक झांसी के संज्ञान में मामला लाये जाने पर रेल सुरक्षा बल को जांच सौंपी गई है।
