(नितेन्द्र झां)
महोबा। बुंदेलखंड का प्रवेशद्वार कहे जाने वाला महोबा रेलवे स्टेशन उत्तर मध्य रेलवे के प्रथम श्रेणी स्टेशनों में शामिल है, जहां हर दिन हजारों यात्री आवागमन करते हैं। प्लेटफॉर्म्स पर स्वच्छता, पीने का पानी, बैठने की समुचित व्यवस्था, और डिजिटल टिकटिंग जैसी कई आधुनिक सुविधाएं मौजूद हैं, लेकिन यात्रियों को सबसे ज़रूरी कुली सेवा आज तक नसीब नहीं हो सकी है।
महोबा स्टेशन को जंक्शन का दर्जा भी प्राप्त है, जहां से खजुराहो, झांसी, कानपुर, दिल्ली और प्रयागराज जैसे प्रमुख शहरों के लिए ट्रेनों का संचालन होता है। इसके बावजूद यहां कुलियों की तैनाती वर्षों से नहीं हो पाई। बुज़ुर्ग, महिलाएं और दिव्यांग यात्री अक्सर भारी सामान के साथ प्लेटफॉर्म से बाहर निकलने में बेहद परेशान होते हैं। निजी तौर पर मदद मांगने या रिक्शा चालकों से सामान उठवाने की मजबूरी बनी हुई है।
स्टेशन पर समय-समय पर रेलवे के उच्चाधिकारियों द्वारा निरीक्षण भी किया जाता है, परंतु इन दौरों में कभी भी कुली व्यवस्था पर गंभीरता नहीं दिखाई गई। जबकि कुली रेलवे की न केवल एक पुरानी परंपरा है, बल्कि यात्रियों की सुविधा से भी जुड़ी एक आवश्यक सेवा है।
महोबा स्टेशन से जुड़े व्यापारियों, स्थानीय नागरिकों और रोज़ाना यात्रा करने वालों की लगातार मांग है कि जल्द से जल्द कुली सेवा बहाल की जाए। उनका कहना है कि जब स्टेशन को प्रथम श्रेणी का दर्जा मिला है और सुविधाएं हाईटेक हो रही हैं, तो मूलभूत ज़रूरतें भी पूरी होनी चाहिए।
रेलवे प्रशासन से अब यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या सिर्फ भवन और तकनीकी विकास ही ‘प्रथम श्रेणी’ की पहचान है? या फिर यात्रियों की बुनियादी ज़रूरतों की पूर्ति भी इस श्रेणी का हिस्सा होनी चाहिए?
महोबा रेलवे स्टेशन भले ही कागज़ों पर आधुनिक और मॉडल स्टेशन बन चुका हो, लेकिन ज़मीन पर कुली जैसी बुनियादी सेवा की अनुपलब्धता आज भी यात्रियों को असुविधा का सामना करने को मजबूर कर रही है। अब देखना होगा कि रेल प्रशासन कब जागता है और कब तक यह प्रतीक्षा खत्म होती है।
