(नितेन्द्र झां)
#महोबा शहर का प्रमुख व्यावसायिक क्षेत्र सराफा बाजार अब एक बड़े भूमि घोटाले की जद में है। बाजार का एक बड़ा हिस्सा नजूल भूमि के रूप में दर्ज है, जिसे कानून के अनुसार न तो बेचा जा सकता है, न ही किसी के नाम स्थानांतरित किया जा सकता है। इसके बावजूद, कुछ भू-माफियाओं ने सुनियोजित तरीके से इस सरकारी भूमि का अवैध रूप से बैनामा करवा लिया है।
उत्तर प्रदेश नजूल एक्ट स्पष्ट रूप से कहता है कि नजूल भूमि का स्वामित्व सरकार के पास होता है। सरकार द्वारा दिए गए पट्टे का अर्थ केवल भूमि के उपयोग का अधिकार होता है, न कि पूर्ण स्वामित्व। पट्टाधारी या उनके उत्तराधिकारी इस भूमि को न तो बेच सकते हैं, न ही इसका बैनामा करा सकते हैं।
लेकिन महोबा के सराफा बाजार में इन स्पष्ट नियमों की खुलेआम अवहेलना की गई। भू-माफियाओं ने पुराने पट्टाधारकों या उनके परिजनों से मिलीभगत कर सरकारी भूमि का अवैध क्रय-विक्रय किया और रजिस्ट्री कार्यालय में बैनामा भी संपादित करा लिया। यह कार्य किसी अज्ञानता में नहीं बल्कि पूरी जानकारी और पूर्व नियोजित तरीके से किया गया।
यह ध्यान देने योग्य है कि सिर्फ रजिस्ट्री हो जाने से कोई संपत्ति वैध नहीं हो जाती और न ही इससे मालिकाना हक प्राप्त होता है। जब तक सरकार स्वयं नजूल भूमि को फ्री होल्ड घोषित नहीं करती, तब तक उसका स्वामित्व किसी भी सूरत में सरकार से किसी और के पास नहीं जा सकता।
सराफा बाजार में कई दुकानों, मकानों और भूखंडों पर किए गए ऐसे बैनामे न केवल कानूनन अमान्य हैं, बल्कि ये राजस्व विभाग और रजिस्ट्री कार्यालय की लापरवाही को भी उजागर करते हैं। सरकारी भूमि की इस प्रकार की खरीद-फरोख्त न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह सार्वजनिक हितों को भी नुकसान पहुंचाने वाला कृत्य है।
नजूल भूमि का उपयोग शासन द्वारा सार्वजनिक कार्यों जैसे सड़क, पार्क, भवन आदि के लिए निर्धारित होता है। ऐसे में इस भूमि का निजी हाथों में जाना जनहित की दृष्टि से अत्यंत घातक हो सकता है।
इस गंभीर मामले को देखते हुए जिले में एंटी भू-माफिया अभियान के तहत ऐसे अवैध बैनामों की जांच कराना आवश्यक है। स्थानीय प्रशासन विशेषकर जिलाधिकारी महोबा और उप जिलाधिकारी महोबा से अपेक्षा की जा रही है कि वे इस विषय में तत्परता दिखाएं और दोषियों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करें।
